6 सितंबर को समस्त सिन्धी समाज के घरों में नही जलाये जायेंगे चूल्हे
“थदिड़ी पर्व” 6 सितंबर को समस्त सिन्धी समाज के घरों में चूल्हे नहीं जलाए जाएंगे। थदड़ी (शीतला सप्तमी) 6 सितंबर को मनाया जाता है, और इसी दिन ठंडा खाना खाया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमप्रकाश मध्यानी, अजय वलेचा और इंद्र कुमार गोधवानी ने बताया कि त्यौहार और संस्कृति किसी भी धर्म की पहचान होते हैं और ये उत्साह, उमंग और खुशियों का प्रतीक होते हैं। थदड़ी सिन्धी समाज के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे मां शीतला देवी की पूजा करने के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पर, समाज के लोग शीतला सप्तमी के रूप में मां शीतला देवी की पूजा करते हैं, जिन्होंने हजारों वर्ष पहले दड़ो की खुदाई में अपनी प्रतिमा निकाली थी। थदड़ी पर्व का उद्देश्य मां शीतला देवी के क्रोध से बचना है, और इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है ताकि मां शीतला देवी की क्रोध से बचा जा सके। इस पर्व के पहले दिन, सभी सिन्धी परिवारों में विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, जैसे की कूपड़, ॻचु कोकी, सूखी तली हुई सब्जियां, और दही-बड़े। इसे दैवीय प्रकोप से जुड़ा माना जाता है, और इस दिन ठंडा खाना खाया जाता है ताकि मां शीतला देवी की क्रोध से बचा जा सके। थदड़ी पर्व के इस महत्वपूर्ण दिन पर, सिन्धी समाज के सदस्य अपने छोटे बच्चों को मिलकर मां शीतला देवी की पूजा करते हैं और उनके लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही, बड़ों द्वारा सभी छोटे सदस्यों को खर्ची के रूप में कुछ दिया जाता है, जिसे “थदिड़ी का ॾिणु” कहा जाता है। इस रूप में, सिन्धी समाज द्वारा मनाया जाने वाला “थदड़ी पर्व” धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से होता है, और यह समाज के अधिकांश लोगों द्वारा उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
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