अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशती : वह राजनेता जिन्होंने अपनी दूरदर्शिता और संकल्प से भारत को आकार दिया
दिल्ली। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 30 दिसंबर 1984 में मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अधिवेशन के उद्घाटन सत्र को अपनी चिरपरिचित शैली में संबोधित करते हुए भविष्यवाणी की थी, “अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।” उनकी यह भविष्यवाणी आज सच साबित हो चुकी है। वाजपेयी की 100वीं जयंती बुधवार को है, और चार दशक बाद भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में है।
वाजपेयी और भाजपा की राजनीतिक यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के सांस्कृतिक एजेंडे को राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बनाया, लेकिन वाजपेयी ने उस समय इसे बढ़ावा दिया, जब इसे राजनीतिक रूप से अवरोधक माना जाता था। वाजपेयी भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
उनकी लोकतांत्रिक भावना और विपक्ष में दशकों तक रहने की सीख ने उन्हें राजनीति में अद्वितीय बनाया। वाजपेयी ने गठबंधन सरकार का सफल नेतृत्व किया और राष्ट्रीय संकटों जैसे 1999 में विमान अपहरण और 2001 में संसद पर हमले का सामना किया। इन घटनाओं का पाकिस्तान से सीधा संबंध था, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया में संयम और दृढ़ता दोनों दिखे।
गठबंधन की राजनीति के सूत्रधार
वाजपेयी की सरकार अप्रैल 1999 में लोकसभा में एक वोट से गिर गई थी। इसके बावजूद उन्होंने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की घुसपैठ का सैन्य और कूटनीतिक रूप से सफलतापूर्वक जवाब दिया। 2003 में उन्होंने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM Act) लागू किया। उनकी आर्थिक नीतियों ने भारत की विकास दर को नई ऊंचाई दी।
सुधार और विकास की योजनाएं
वाजपेयी के नेतृत्व में शुरू हुई प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, और सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रम आज भी उनकी विरासत का हिस्सा हैं। उनके मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने कहा कि “सुशासन उनका ऐतिहासिक योगदान था।” उनके नेतृत्व में शुरू की गईं बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने भारत के आर्थिक विकास को गति दी।
विदेश नीति और वैश्विक दृष्टिकोण
वाजपेयी की विदेश नीति में परंपरा और आधुनिकता का मिश्रण था। 1998 में उन्होंने परमाणु परीक्षण कर भारत को एक परमाणु शक्ति बनाया। पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता के प्रयास में उन्होंने 1999 में लाहौर बस यात्रा और 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन आयोजित किया।
जम्मू-कश्मीर पर “इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत”
जम्मू-कश्मीर समस्या को हल करने के लिए वाजपेयी ने “इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत” का नारा दिया। यह नारा आज भी प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में इसे अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में उद्धृत किया।
एक मंत्रमुग्ध कर देने वाले वक्ता
वाजपेयी के भाषणों का जादू सभी पर चलता था। उनके पहले लोकसभा भाषण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने कहा, “यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।” 1977 में विदेश मंत्री रहते हुए वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में पहला भाषण दिया।
अंतिम वर्षों का संघर्ष
वाजपेयी धीरे-धीरे डिमेंशिया से प्रभावित हुए और 2018 में उनका निधन हो गया। उनकी जयंती को मोदी सरकार ने “सुशासन दिवस” के रूप में मनाना शुरू किया और 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।
वाजपेयी की जन्मस्थली और प्रारंभिक जीवन
वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक थे। आजीवन अविवाहित रहे वाजपेयी ने भारतीय राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी।